amazing and incredible story of lijjat papad in hindi ,सात गुजराती महिलाओं की अविश्वशनीय कहानी
ईन्डिया में हम खानें को बहोत पवित्र मानते हैं। भारतीय संस्कृति में हर खुशी व्यक्त करने का पहला जरिया है खाना, और ईस खाने में हमारे घर की महिलाओं के हाथ का जादु मील जाए तो क्या कहेना. शादी- विवाह , जन्मदिवस की दावत - पार्टी जैसे अवसरों से लेकर जीवन की हर छोटी बड़ी खुशी पर, हम स्वादिष्ट खाने की आपेक्षा सबसे ज्यादा क्युं रखते है ? किसी अन्य चीज की आपेक्षा क्युं नहीं रखते ? क्योंकी खाने से हमारे जीवन की शक्ति जुड़ी हुई है ।खाना खाने से हमारा मन आनंद-विभोर हो जाता है और ये खुशी हमारे चेहरे पर स्पष्ट देखी जा सकती है
amazing and incredible story of lijjat papad in hindi ,सात गुजराती महिलाओं की अविश्वशनीय कहानी |
खाने का क्या महत्व है हमारे जीवन में ;
महिलाओं का हमारी रसोई में बडा महत्व है, भोजन किस भावना से बनाया गया है, खाना किस दुलार और भाव के साथ बना है यह साफ झलकता है पिरोशे गए खानें में , ईन्डिया में खाने और बनाने के आपने- अपनें अलग और
पारंपरिक तरीके हैं, लेकिन खाने का स्वाद बढाने के लिए अब क्रेकर्स का चलन
खुब बढ गया है, भारत में क्रेकर्स ( पापड ) बनाने की कई कंपनियां हैं, ईन्हीं में
एक बडा नाम है ' लिज्जत ' lijjat papad . भारत में शायद ही कोई व्यकित अएसा होगा जो लिज्जत के नाम से परिचीत ना हो! पापड़ बनाने के मामले में
Lijjat एक बहोत ही विश्वनीय कंपनी है,
Lijjat के बारे में ;
'लिज्जत' को कंपनी कहेना उचित नहीं है, बल्किन " lijjat " एक संस्था है ।
जो पुरी तरह से महिलाओं द्रारा संचालीत है, और तो और भाई ईसकी
स्थापना भी एक महिला ने ही की थी । 80 रूपए के लोन से शुरू
किया गया बीजनेश जो आज 500 करोड का हो गया हैं। कैसे ? आईए
जानते हैं ' लिज्जत पापड ' की success स्टोरी.
90बे के दशक में जब यह कारोबार सफलता की उंचाईयों को छु रहा था तब
आपने शायद टेलीविजन पर प्रसारीत होने वाले विज्ञापन देखे होंगे,हम उन विज्ञापनो को भुला नहीं पाएगे। भारत के ग्रामिण ईलाकों के ईस व्यवसाय ने किस तरह सफलता प्राप्त की, आईए जानते हैं लिज्जत पापड की कहानी।
लिज्जत पापड lijjat आज इतना बडा नाम है, जिसको अनेक राष्ट्रिय और आंतर राष्ट्रीय पुरस्कारों से सन्मानीत किया गया है " लिज्जत पापड़ " नाम का चुनाव स्वाद गुणवत्ता और अच्छाई को ध्यान में
रख कर किया गया है। वर्षों से , वहां के स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता छगन
पारेख और दत्तानी द्रारा उध्नीय महिलाओं का संरक्ष्ण किया जाता है ।
लिज्जत पापड मुंबई में रहने वाली सात गुजराती निरक्षर महिलाओं की उपज था। उन गृहीणीओं के पास घर का सारा रोजमर्रा का काम निपटानें के बाद-
काफी समय बच जाता था। उस समय का उपयोग कर परिवार की आर्थिक
रूप से मदद करनें के विचार नें जसवंतीबेन को मजबूर किया लिज्जत की स्थापना करनें को, भाई साहब आप तो जानते ही होंगे हमारे गुजराती भाई
व्यापार के मामले में कितना मशहूर है, वैसे ही गुजरात की महिलाएं भी खाना
बनाने में किसी से कम नहीं है
ईन सातों महिलाओं ने प्रण लिया था की कारोबार में चाहे घाटा हो तो भी
चंदा नहीं लेना है, ईस लिए उन गृहिणीओं नें सामाजिक कार्यकर्ता छगनलाल पारेख से 80 रूपए उधार लिए, ईसके बाद एक घाटे में चल रहे उधोग से उन महिलाओं नें पापड मेकिंग मशिन खरीदा और पापड बनाने के जरूरी सामान भी खरीदा,
कब हुई पापड बनाने की शुरूआत ;
मार्च 15, 1959 के दिन, ये सभी महिलाएं अपनी बिल्डींग की जत पर ईक्कठा
हुईं और उन्हों ने चार पैकेट पापड़ बनाए। उन गृहिणीओं ने ईन पापडों को वहां पहेचान के स्थानीय व्यापारी 'भूलेश्र्वर ' को बेंचा और आंगे जाकर ईन महिलाओं ने पापड़ उसी व्यापारी को पापड़ बेचना शुरू कर दिया।
कौन रहा मार्गदर्शक ;
अब वही सामाजिक कार्यकर्ता जीन्हों ने जसवंतीबहन की आर्थिक सहाय की थी छगनबापा ईन गृहिणीयों के मार्गदर्शक बन गए थे । शुरूआत में ये गृहिणीयां 2 प्रकार के पापड़ बनाते थे, क्यों की छगनभाई
सामाजिक कार्यकर्ता तो थे ही लेकिन साथ - साथ वो व्यापार में भी माहिर थे,
ईसी वजह से छगनभाई ने उन महिलाओं को स्टेंडर्ड क्वालिटी पापड बनाने का और क्वालिटी के साथ समझौता न करने के सुझाव दिया । छगनलाल की कार्यकुशलता की वजह से कारोबार का पुरा लेखा जोखा वही रखते थे, अब
धीरे - धीरे " श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ " co-opretive सीस्टम
बन गया था। ईस उधोग में शुरूआत में छोटी उम्र की लड़कीयाँ भी काम कर
सकती थी, लेकिन समय के साथ मजबूत होती कानुन व्यवस्था के कार के कारण,
ईस उध्धोग से जुडने की न्युनतम् उम्र 18 वर्ष कर दी गई,
3 महीनों में ही पापड बनाने वाली गृहीणीयों की संख्या 25 तक चुकी थी ,उन में से कुछ महिलाए पापड़ बनाने का सामान जैसे बर्तन, स्टाॅव जरूरी सामान
अपने साथ ले आती थी। जीससे उन गृहीणीओं की काफी अच्छी आर्थिक सहाय मिल जाती थी। पापड बनाने और सुखाने के दौरान जो पापड टुट जाते थे, उन्हें वो महिलाएं पडोशियों व संबंधीयों में बांट देती थीं। बाकी बचे पापड़
व्यापारी भुलेश्वर को बेंच देती थी। जीससे शुरूआती साल में उन्हें तकरीबन
6200 रुपयों की आय हुई।
कीन -कीन सभस्याओं का सामना करना पडा ;
समय गुजरते ईन महीलाओं को एक बडीं समस्या का सामना करना पडा।
वो समस्याए थी की चौमास ( वर्षा के चाल महीने ) धुप ना नीकलने और बरसात के चलते पापड सुख नहीं पाते थे, ईन क्रेकर्स के ना सुखने के कारण
ईन्हें अपना कारोबार कुछ दिनों के लिए ठप्प करना पड़ा। हिन्दुस्तानीयों के पास हर चीज का हल है, ईन गृहीणीयों ने ईस समस्या का भी समाधान यानी की (जुगाड) ढुंढ लीया, उन्हो नें एक खटोला ( चार पाई ) और स्टव खरीद लिया, जिसकी मदद से उन महिलाओं ने फिर से पहले की तरह पापड बनाना
शुरू कर दिया बस ईस बार पापडों को खटोले पर स्टव की आंच में सुखाना शुरू किया अब आंधी हो या बरसात अब उन महीलाओं को काम जारी रख शकती थी।
लिज्जत ने खुब लुटी वाह-वाही ;
लिज्जत ने टेलिवीजन और दैनिक अखबारों में विज्ञापनों के जरीए खूब नामना कमाई. ईन विज्ञापनों से उनको काफी फायदा हुआ और कई गृहीणीयां इस व्यवसाय से जुडती गई। अंगले ही साल ईस संस्था में तकरीबन 150 महिलाएं जुड गई , और तीसरे साल धीरे - धीरे यह संख्या 300 के आसपास पहोंच
चुकी थी, यह कारोबार ईतना बढ गया था की अब उनके बिल्डींग की छतें कम
पडने लगी थी । ईस परेशानी के चलते जसवंतीबेन ने उन महिलाओं को पापड का सामान घर पर ले जाकर घर पर ही पापड बना कर छत पर सुखाने की सलाह दी, और पापड बनाने के बाद उन्हें वापस तोला और जांचा जाने के बाद
पैक कर दिया जाता था।
लिज्जत की स्थापना ;
1962 में ईस संस्था का बडी सुझ - बुझ के बाद नाम-करण किया गया।
" लिज्जत पापड़ " lijjat papad नाम रखा गया और ईसे एक नई पहेचान
दी गई , ईस नाम को चुनने के लिए एक प्रतियोगीता रची गई थी। और
धीरजबहन ईस प्रतियोगीता में विजयो हुईं , उनहीं के सुझाव से ईस ग्रुप को
यह पहेचान दी गई। ईस ओर्गेनाईजेशन का पुरा नाम “श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़” रखा गया
कौन थीं वो सात महिलाएं ? ;
वो सात साहसी महिलाओं के नाम कुछ ईस तरह हैं,
जसवंतीबहन जमनादास पोपट .
पार्वतीबहन रामदास ठोदानी .
उजमबहन नरानदास कुण्ड़लिया .
लागुबहन अम्रृतलाल गोकानी .
जयाबहन विठ्ठलानी .
भानुबहन तन्ना .
( और एक महिला थी ) जीसका नाम हमें अभी पता नहीं है,
लेकिन जल्द ही उनका नाम अपडेट किया जाएगा,
ईन सातों महिलाओं के साथ - साथ छगनलाल की महत्वपुर्ण
भुमिका भुलाई नहीं जा सकती।
यह संस्था आज लाखों ग्रामिण व गरीब महिलाओं की आजिवीका का मुख्य साधन बन चुका है।
● Akhir kyoun Rote Hain Raat main kutte [वैज्ञानिक कारण]
आपकी ओर ;
तो दोस्तों कैसी लगी यह जानकारी, ईसमें हमने आपको बाताया किस तरह कुछ सामान्य गुजराती महिलाओं के एक छोटे साहश ने एक क्रांति छेड दी,
दोस्तों आपको कैसक लगी यह जानकारी हमें कमेंन्ट करके जरूर बताएं,
अगर आपको यह पोस्ट use-full लगे तो अपनें दोस्तों को शेयर जरूर करें
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Published 29 july, 2017 By Aashish R.
Ashish R. is CEO at chutkula bazar ,
and former Director of Content at
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